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बुधवार, 11 दिसंबर 2019

नष्ट धन/फंसा हुआ धन - वापिस प्राप्ति के लिए श्रीकार्तवीर्यार्जुन (अनुष्ठान मन्त्र)

       




                           ॥श्रीकार्तवीर्यार्जुनाय नमः ।।





विनियोगः -
      ॐ अस्य श्री कार्तवीर्यार्जुनमन्त्रस्य दत्तात्रेय ऋषिः
अनुष्टप् छन्दः श्री कार्तवीर्यार्जुनो देवता कामनासिद्धयर्थे
जपे विनियोगः
 
   
करन्यासः -
ॐ दत्तात्रेयप्रियतमाय - अङ्गष्ठाभ्यां नमः
ॐ माहिष्मतीनाथाय. तर्जनीभ्यां नमः
ॐ रेवाजलक्रीडासक्ताय मध्यमाभ्यां नमः
ॐ हैहयाधिपतये अनामिकाभ्यां नमः
ॐ सहस्रबाहवे - कनिष्ठिकाभ्यां नमः
   
       ऊँ दत्तात्रेय प्रियतमाय, माहिष्मतीनाथाय,
रेव्राजलक्रीडासक्ताय, हैहयाधिपतये, सहस्त्रबाहवे नमः,
करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।।
 
   हृदयादिन्यासः -

ऊँ दत्तात्रेयप्रियतमाय - हृदयाय नमः
ॐ माहिष्मतीनाथाय - शिरसे स्वाहा 
ॐ रेवाजलक्रीडासक्ताय - शिखायैवषट्
ॐ हैहयाधिपतये - कवचाय हुम्
ॐ सहस्रबाहवे - नेत्रत्रयाय वौषट्
ॐ दत्तात्रेय - प्रियतमाय, माहिष्मतीनाथाय,
रेवाजलक्रीडासक्ताय, हैहयाधिपतये, सहस्त्रबाहवे नमः,अस्त्राय फट् ।

                      ध्यानम् -

सहस्रबाहुं सशरं सचापं,

             रक्ताम्बरं रक्तकिरीटकुण्डलम् ।
चौरादिदुष्टभयनाशनमिष्टदं तं,

              वन्दे महाबलविजृम्भितकार्तवीर्यम् ।।

मूलमन्त्र

ॐ नमो भगवते श्री कार्तवीर्यार्जुनाय हैहयनाथाय
कार्तवीर्यार्जुन सहस्रकर - सदृश - सर्व - दुष्टान्तक सर्वानुदधे
आगन्तुकास्मदवस्तुविलुम्पकान् चौरसमूहान् चक्रसहस्रा
कर्षयाकर्षय स्वचापोदगत - बाणसह्रैः भिन्धि भिन्धि,
स्वहस्तोद्गत - मुसलसहस्त्रैर्भीषयभीषय, स्वशङ्खोद्गत
नादिसहस्त्रैन्निकृन्तय निकून्तय त्रासय त्रासय गर्जय गर्जय
आकर्षयाकर्षय भ्रामय भ्रामय मोहय मोहय उन्मादयोन्मादय
तापय तापय विदारय विदारय स्तम्भय स्तम्भय निकृन्तयः
"कृन्तय मारय मारय उत्पाटयोत्पाटय   उच्चाटयोच्चाटय विनाशय विनाशय वशीकुरु कुरु चौरसमूहान् सम्यगन्मूलयोन्मूलय हुं फट् स्वाहा ॥

             समर्पण-ध्यानम्
 
दोर्दण्डैकसहस्रसम्मितकरेष्वेतेष्वजस्त्रंदधत्,
कोदण्डं स्वशरैरुदनविशिखैरुद्यद्विवस्वत्प्रभः ।
ब्रह्माण्डं परिपूरयन्स्विदखिलं गण्डस्थलालोलितम्,
द्योतत्कुण्डलमण्डितंविजयतेश्रीकार्तवीर्यार्जुनः।। १ ।।
ॐ कार्तवीर्यार्जुनो नाम राजा बाहुसहस्रभृत् ।
तस्य स्मरणमात्रेण हृतं नष्टञ्च लभ्यते ।।२।।
ॐ कार्तवीर्यः खलद्वेषी कृतवीर्यसुतो बली ।
सहस्रबाहुः शत्रुघ्नो रक्तवासा धनुर्धरः ।। ३ ।।
रक्तगन्धो रक्तमाल्यो राजा स्मर्तुरभीष्टदः)।
द्वादशैतानि नामानि कार्तवीर्यस्य यः पठेत् ।। ४ ।।
अनष्टद्रव्यता तस्य नष्टद्रव्यस्यचागमः ।
सम्पदस्तस्य जायन्ते राजानश्च वशङ्गताः ।।५ ।।
आनयेत्स तु दूरस्थं क्षेमलाभयुतं प्रियम् ।
हैहयाधिपतेः स्तोत्रं सहस्रावर्तितं यदि ।
वाञ्छितार्थफलं दद्यात् शूद्राद्यैर्न श्रुतं यदि ।।६।।
दक्षे पञ्चशतं बाणान् वामे पञ्चशतं धनुः ।
तमेव शरणं प्राप्तः सर्वतो रक्ष रक्ष माम ।। ७ ।।

।। श्रीकार्तवीर्यार्जुनस्तोत्रं सम्पूर्णम्॥॥

    किसी ने आपका धन लिया है वापिस नहीं कर रहा है - कहीं किसी कारण वश आपको मिलने वाला धन फंसा हुआ है है, तो यह अनुष्ठान (मन्त्र जप)  11000 
किसी (इसकी विधि के जानकार) ब्राह्मण द्वारा कराये जाने पर निश्चित ही उस धन की प्राप्ति होती है ||


नोट- यह कहीं से कापी नहीं किया है लिखने में यदि कुछ त्रुटि रह गई हो तो अवश्य सूचित करें, 
      धन्यवाद 🙏🙏🙏 ऊँ काली



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