रावण महान था ! मूर्खता,
माननीय रावण जी की सबसे बड़ी महानता बतायी जाती है कि उन्होंने सीता का अपहरण किया किन्तु इतने संयमी थे कि उनकी इच्छा के बिना उनका स्पर्श नहीं किया ।
अब इस मूर्ख बुद्धि को क्या कहा जाए समझ से परे की बात है | उनकी इच्छा के बिना स्पर्श नही करना चाहता था तो बाँहों में दबाकर घसीटता हुआ अपहरण कैसे किया ? एक स्त्री की इच्छा के बिना उसका स्पर्श नहीं करना चाहता था किन्तु उसकी इच्छा के बिना उसके घर से अपहरण कर के बंदी जरूर बना लिया था | अरे उसने एक वर्ष का समय दिया था, मानसिक रूप से तोड़कर सदैव के लिए अपनी दासी बना कर रखना चाहता था | वो ये भी नही चाहता रहा होगा कि एक छोटी सी गलती के लिए यह आत्महत्या कर ले और सारा प्रयास बेकार जाए |
अब आदरणीय रावण जी के संयम का उदहारण देखिये -
बह्वीनामुत्तंस्त्रीणामाह्रितानामितस्तः
सर्वासामेव भद्रं ते ममाग्र महिषी भव
मैं इधर उधर से बहुत सी सुन्दर स्त्रियों को हर लाया हूँ | उन सबमें तुम मेरी पटरानी बनो |
( रावण देवी सीता से )
- अरण्य काण्ड ४७वाँ सर्ग
धर्म की वह जड ही काट देता था और पराई स्त्रियों के सतीत्व का नाश करने वाला था
-अरण्यकांड ३२वां सर्ग ,
सीता के अलावा जिन हजारों औरतों को हर के लाया उन्हें क्यों नही अशोक वाटिका में रखा ? क्या वे सभी अपहृत नाग ,देव गन्धर्व, किन्नर, मानव, असुर आदि जातियों की औरतों उसके साथ सोने के लिए स्वेच्छा से तैयार थीं ?
जिस रावण को आज के चपड़गंजू महान बताते हैं उसके भय से तीनों लोकों की स्त्रियाँ त्रस्त थीं | मनुष्य तो मनुष्य देवता, यक्ष , गन्धर्व , असुर आदि की स्त्रियों की भी खैर नहीं थी | रावण के लम्पटता की कहानी ये है कि पहले वो शूर्पणखा की नाक का बदला लेने के लिए तैयार नहीं होता है किन्तु जब शूर्पनखा एक प्रोफेशनल दल्ले की तरह उसके सामने वन में आई हुई राजकुमारी के अंग प्रत्यंगों का कामुक वर्णन करती है तो वो देवी सीता के हरण के लिए तुरंत तैयार हो जाता है | ( अरण्य ३४ )
उसकी दुष्टता की कुछ झलकियाँ देखिये -
समाप्ति के निकट पहुँचने वाले यज्ञों को विध्वंश करने वाला ब्राम्हणों की हत्या तथा दुसरे क्रूर कर्म करता था |
- अरण्यकांड ३२वां सर्ग ,
वह इतना उद्दंड हो गया है कि ऋषियों,यक्षों, गन्धर्वों असुरों तथा ब्राम्हणों को पीड़ा देता है उनका अपमान करता है |
वह मूर्ख रावण अपने बढे हुए पराक्रम से देवता गन्धर्व तथा ऋषियों को अत्यंत कष्ट दे रहा है |
उस रौद्र निशाचर ने ऋषियों तथा अप्सराओं को भी पतित कर दिया है |
- बालकाण्ड, पंचदश सर्ग, श्लोक ९,२२,२३
वह तीनों लोकों को पीड़ा देता है और स्त्रियों का भी अपहरण कर लेता है
- बालकाण्ड, षोडश सर्ग , श्लोक ७
वह निशाचर तीनों लोकों के निवाशियों को भयंकर कष्ट दे रहा है |
बालकाण्ड, बीसवां सर्ग श्लोग १७
श्रीराम ! इस वन में रहने वालले वानप्रस्थ महात्माओं का समुदाय, जिसमे अधिकांश ब्राम्हण हैं तथा जिनके रक्षक आप ही हैं उन्हें राक्षसों द्वारा अनाथ की तरह मारा जा रहा है |
आईये देखिये, ये राक्षसों द्वारा मारे गये बहुसंख्यक पुण्यात्मा मुनियों के कंकालों के ढेर दिखाई दे रहे हैं |
पाम्पा सरोवर और उसके निकट बहाने वाली तुंगभद्रा नदी के तट पर जिनका निवास है, जो मन्दाकिनी के किनारे रहते हैं तथा जिन्होंने चित्रकूट को अपना निवास बना लिया है उन सभी ऋषियों महर्षियों का राक्षसों द्वारा भयंकर संहार किया जा रहा है |
-अरण्य काण्ड सप्तम सर्ग
रावण के रूप में सम्पूर्ण दुष्टतायें मूर्त हो गयीं थीं इसलिए लाखों साल से हिन्दू रावण और बुराई को पर्यायवाची मानते आये हैं किन्तु आज बुद्धि भ्रष्ट नीचों को प्रभु श्रीराम के निर्मल चरित्र के स्थान पर रावण अधिक प्रेरणास्पद लगता है |




फिर भी रावण महान लगे किसीको तो ,,🙏