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शनिवार, 18 फ़रवरी 2017

महाकाल स्तोत्रं



इस स्तोत्र को भगवान् महाकाल ने खुद भैरवी को बताया था. इसकी महिमा का जितना वर्णन किया जाये कम है. इसमें भगवान् महाकाल के विभिन्न नामों का वर्णन करते हुए उनकी स्तुति की गयी है . शिव भक्तों के लिए यह स्तोत्र वरदान स्वरुप है . नित्य एक बार जप भी साधक के अन्दर शक्ति तत्त्व और वीर तत्त्व जाग्रत कर देता है . मन में प्रफुल्लता आ जाती है . भगवान् शिव की साधना में यदि इसका एक बार जप कर लिया जाये तो सफलता की सम्भावना बढ़ जाती है ।
ॐ महाकाल महाकाय महाकाल जगत्पते
महाकाल महायोगिन महाकाल नमोस्तुते
महाकाल महादेव महाकाल महा प्रभो
महाकाल महारुद्र महाकाल नमोस्तुते
महाकाल महाज्ञान महाकाल तमोपहन
महाकाल महाकाल महाकाल नमोस्तुते
भवाय च नमस्तुभ्यं शर्वाय च नमो नमः
रुद्राय च नमस्तुभ्यं पशुना पतये नमः
उग्राय च नमस्तुभ्यं महादेवाय वै नमः
भीमाय च नमस्तुभ्यं मिशानाया नमो नमः
ईश्वराय नमस्तुभ्यं तत्पुरुषाय वै नमः
सघोजात नमस्तुभ्यं शुक्ल वर्ण नमो नमः
अधः काल अग्नि रुद्राय रूद्र रूप आय वै नमः
स्थितुपति लयानाम च हेतु रूपआय वै नमः
परमेश्वर रूप स्तवं नील कंठ नमोस्तुते
पवनाय नमतुभ्यम हुताशन नमोस्तुते
सोम रूप नमस्तुभ्यं सूर्य रूप नमोस्तुते
यजमान नमस्तुभ्यं अकाशाया नमो नमः
सर्व रूप नमस्तुभ्यं विश्व रूप नमोस्तुते
ब्रहम रूप नमस्तुभ्यं विष्णु रूप नमोस्तुते
रूद्र रूप नमस्तुभ्यं महाकाल नमोस्तुते
स्थावराय नमस्तुभ्यं जंघमाय नमो नमः
नमः उभय रूपा भ्याम शाश्वताय नमो नमः
हुं हुंकार नमस्तुभ्यं निष्कलाय नमो नमः
सचिदानंद रूपआय महाकालाय ते नमः
प्रसीद में नमो नित्यं मेघ वर्ण नमोस्तुते
प्रसीद में महेशान दिग्वासाया नमो नमः
ॐ ह्रीं माया – स्वरूपाय सच्चिदानंद तेजसे
स्वः सम्पूर्ण मन्त्राय सोऽहं हंसाय ते नमः
फल श्रुति
इत्येवं देव देवस्य मह्कालासय भैरवी
कीर्तितम पूजनं सम्यक सधाकानाम सुखावहम

शिवलिंग व खजुराहो

        नमो नीलकण्ठाय ,, हर हर महादेव !!



         अजीब मूर्ख हैं इस देश में
शिवलिंग पर मैंने कई तरह के टिका टिपण्णी पढ़ी खजुराहो मंदिर पे संभोगरत मूर्ति कला के पर मजाक उड़ाया गया ।
अरे भाईयो वो क्या सन्देश है जो दिया गया था समझने की                    कोशिश की कभी ?
कहीं और होता तो कोई बात होती लेकिन मंदिर पे ? पूछिये आज के सनातनी व्याख्याकारों से , उनके पास शायद ही कोई उत्तर होगा. क्युकि वो पार्टी प्रचार में व्यस्त हैं उनके पास इतना समय कहाँ !
शास्त्र अध्यन से लगता है , यही गुप्त सन्देश जो वासना से मुक्त हो गया वही ईश्वर से मिलने को तैयार हो सकता है । वही मन मंदिर के अंदर प्रवेश कर विराजमान ईश्वर दर्शन का अधिकारी हो पायेगा । कैसा खुले विचारों वाला समाज रहां होगा उस वक्त जो इस मंदिर को अपने समाज में श्रद्धा के साथ स्थान देता हो सोचने की बात है ।
           !! स्वयंविचार करें. !!