शुक्रवार, 14 दिसंबर 2018
क्या गुरु जिस भाव मैं बैठता है, उस भाव की हानि करता..! नहीं
आज एक जन्म पत्रिका देख रहा था, जो क्षेत्र के प्रसिद्ध ज्योतिषी द्वारा बनाई गई थी,
उन्होंने, मीन लग्न की कुंडली में लग्न में ही बैठा हुआ अकेला बृहस्पति, का फलादेश करते हुए उसे लग्न क्षय करने वाला ही बता दिया,और कैप्सन में लिखा,(स्थान हानि करो जीव:स्थानवृद्धि करो शनि:)
,,,
, , जबकि यह अर्धश्लोक है, पूरा श्लोक है,
"जीव क्षेत्रे यदा शनि:,शनि क्षेत्रे यदा जीव:,
स्थान हानि करो जीव:स्थानवृद्धि करो शनि: ||
अर्थात गुरु के क्षेत्र में शनि हो और शनि के क्षेत्र में गुरु हो,, तब गुरु उस स्थान की हानि करता है और शनि फल वृद्धि...
इसलिए ध्यान रखें, हर जगह गुरु हानिकारक नहीं और हर जगह शनि की स्थिति उस भाव के लिए वृद्धिकारक नहीं होती...
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Meen lagan me chandrma guru navam bhav me mangal maker rashi ka rahu ke sath sani SUKRA bhuda trateya bhav me ketu pancham me
जवाब देंहटाएंमै सहमत हूं
जवाब देंहटाएंक्या सिंह लग्न के सप्तम भाव मे गुरु हो तो पुखराज धारण कर सकते है?
जवाब देंहटाएंHa
हटाएंBandhu mantr kis pustak se hai
जवाब देंहटाएंIt all depends on situation.always not 2+2 = 4
जवाब देंहटाएंEarlier times gurus used to stay in austerity!
जवाब देंहटाएंBut present times it's different, they stay 5 star life. So times have evolved
आचार्यवर प्रणाम ये पूर्ण श्लोक किस पुस्तक में पढ़ने मिलेगा, मानसागरी, फलदीपिका या कोई और। कृप्या मार्गदर्शन करें।
जवाब देंहटाएंमान्यवर इस श्लोक का सन्दर्भ देने का कष्ट करें...
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