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मंगलवार, 7 फ़रवरी 2017

कुण्डली में ग्रह प्रभाव ,

हम सबकी  कुण्डली में एक विशेष ग्रह होता है, जो कुण्डली का मुख्य ग्रह होता  है।  इस ग्रह के कमजोर होने पर व्यक्ति कों सफलता नहीं मिलती है,  अगर मिलती भी है तो बड़ी मुशकीलों का सामना करना पड़ता है।
ये आपको लग्न के अनुसार बताया जा रहा है :-

(1) *मेष लग्न  लग्न का मुख्य ग्रह सूर्य है।  इस लग्न में सूर्य चमत्कारी परिणाम देता है।  अगर कुण्डली में सूर्य मजबुत हो तो हर तरह की सफलता पाई जा स्कती है। सूर्य मजबुत होने पर स्वास्थ हमेशा अच्छा बना रहता है।

(2) *वृष लग्न इस ग्रह का मुख्य ग्रह शनि है। इस लग्न में शनि सबकुछ होता है। अगर शनि मजबुत हो तो सारी समस्याओं का समाधान हो जाता है। इस लग्न में शनि धन , सेहत , वैभव , और रिशतों का वरदान् देता है। अगर शनि मजबुत हो तो कोई भी बीमारी बड़ा रुप धारण नहीं कर सकती है।

(3) *मिथुन लग्न इस लग्न का मुख्य ग्रह बुध होता है। इस लग्न का स्वामी भी बुध होता है। बुध आर्थिक– मजबुती देता है और व्यक्ति की सोच कों बेहतर रखता है। अगर बुध कमजोर हो तो बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है ! व्यक्ति ठीक समय पर निर्णय नहीं लें पाता है और ज़िन्दगी ढह जाती है और कोई भी सफलता नहीं मिलती है।

(4) *कर्क लग्न इस लग्न का मुख्य ग्रह मंगल है। कर्क लग्न सबसे बड़ा राजसी लग्न होता है।  इस लग्न में सबसे बड़ी शक्ती मंगल के पास होती है।  अगर मंगल मजबुत हो तो सफलता मिलती रहती है।दुर्घटना और सेहत की समस्या से बचाव होता है ! व्यक्ति कों कम प्रयास में ही सफलता मिलती है ! इस लग्न में अगर मंगल– अच्छा ना हो तो व्यक्ति का विकास नहीं होता है।
(5) *सिहृं लग्न इस लग्न में दो मुख्य ग्रह होतें है मंगल और गुरू। इस लग्न की ताकत दोनों ग्रहों में विभाजित हो जाती है ! अगर दोनों ग्रह अच्छें हो तो जीवन में आने वालें उतार – चढ़ावं से बचें रहेंगे। मंगल और गुरू के मजबुत होने पर जीवन में संघर्ष कम हो जाता है ! मजबुत होने पर व्यक्ति की ताकत और प्रभाव कों बड़ाता है।

(6) *कन्या लग्न  इस लग्न का मुख्य ग्रह शुक्र है। शुक्र इस लग्न में सबसे ज्यादा बेहतर परिणांम देता है। शुक्र के मजबुत होने पर वैभव एवं रिश्तों का वरदान मिलता है ,अगर शुक्र अच्छा हो तो ग्लैमर मिलता है और सुख सफलतां मिलती है।

(7) *तुला लग्न इस लग्न का मुख्य ग्रह शनि होता है। अगर शनि मजबुत हो तो व्यक्ति अपुर्व सफलता प्राप्तं करता है। जीवंन में किसी भी चीज का अभाव नहीं रहता है। शनि के मजबुत होने पर व्यक्ति समाज में विशिष्ठ स्थान पाता है।

(8) *वृशिचक लग्न  इस लग्न का मुख्य ग्रह गुरू है। गुरु के मजबुत होने पर धन, मान, स्वास्थ,
 संतान और ज्ञान का वरदान मिलता है ! गुरू के कमजोर होने पर सफलता नहीं मिलती है।

(9) *धनु लग्न  इस लग्न का मुख्य ग्रह मंगल है।  इस लग्न में सारी शक्ति मंगल के पास होती है।  मंगल मजबुत होने पर जीवंन् में संघर्ष कम हो जाता है। मुकदमों और विवादों से छुटकारा मिलता है। धनु लग्न .में शनि का दुष्प्रभाव जल्दी हो जाता है ! मंगल मजबुत होनें पर ये शनि के दुष्प्रभाव से बचाता है।

(10) *मकर लग्न  इस लग्न का मुख्य ग्रह शुक्र है। शुक्र मजबुत होने पर विद्या ,बुद्धि ,धन का लाभ देता है। ये करियर का लाभ देता है। मजबुत होने पर स्वास्थ और संतान की समस्या से बचाव करता है। इस लग्न वालों कों शराब और नशें से परहेज करना चाहिऐं !

(11) *कुम्भ लग्न  इस लग्न में मुख्य दो ग्रह होतें है बुध और शुक्र।  शुक्र ज्यादा महत्वपूर्ण होता है ! अगर शुक्र अच्छा हो तो नाम ,यश , ग्लैमर मिलता है ! व्यक्ति करियर की उचाईयों कों छुता है ! शुक्र हर तरह की मानसिक समस्याओं से छुटकारा दिलता है।

(12) *मीन लग्न
 इस लग्न का मुख्य ग्रह चन्द्र होता है। इस लग्न की सारी ताकत चन्द्र के पास होती है ! चन्द्र मजबुत होने पर व्यक्ति ज्ञानी ,शानदार और सफल होता है ! चन्द्र अच्छा करियर देता है ! चन्द्र मजबुत होने पर अच्छी संपति का वरदान भी मिलता है।

श्री हनुमान चालीसा


श्रीगुरु चरण सरोज रज, निज मनु मुकुर सुधारि। बरनउँ रघुवर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।।

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार। 
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार।।

   जय हनुमान ज्ञान गुन सागर
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥१॥

राम दूत अतुलित बल धामा
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा॥२॥

महाबीर बिक्रम बजरंगी
कुमति निवार सुमति के संगी॥३॥

कंचन बरन बिराज सुबेसा
कानन कुंडल कुँचित केसा॥४॥

हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजे
काँधे मूँज जनेऊ साजे॥५॥

शंकर सुवन केसरी नंदन
तेज प्रताप महा जगवंदन॥६॥

विद्यावान गुनी अति चातुर
राम काज करिबे को आतुर॥७॥

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया
राम लखन सीता मन बसिया॥८॥

सूक्ष्म रूप धरि सियहि दिखावा
विकट रूप धरि लंक जरावा॥९॥

भीम रूप धरि असुर सँहारे
रामचंद्र के काज सँवारे॥१०॥

लाय संजीवन लखन जियाए
श्रीरघुबीर हरषि उर लाए॥११॥

रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥१२॥

सहस बदन तुम्हरो जस गावै
अस कहि श्रीपति कंठ लगावै॥१३॥

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा
नारद सारद सहित अहीसा॥१४॥

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते
कवि कोविद कहि सके कहाँ ते॥१५॥

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा
राम मिलाय राज पद दीन्हा॥१६॥

तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना
लंकेश्वर भये सब जग जाना॥१७॥

जुग सहस्त्र जोजन पर भानू
लिल्यो ताहि मधुर फ़ल जानू॥१८॥

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं
जलधि लाँघि गए अचरज नाहीं॥१९॥

दुर्गम काज जगत के जेते
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥२०॥

राम दुआरे तुम रखवारे
होत ना आज्ञा बिनु पैसारे॥२१॥

सब सुख लहैं तुम्हारी सरना
तुम रक्षक काहु को डरना॥२२॥

आपन तेज सम्हारो आपै
तीनों लोक हाँक तै कापै॥२३॥

भूत पिशाच निकट नहिं आवै
महावीर जब नाम सुनावै॥२४॥

नासै रोग हरे सब पीरा
जपत निरंतर हनुमत बीरा॥२५॥

संकट तै हनुमान छुडावै
मन क्रम वचन ध्यान जो लावै॥२६॥

सब पर राम तपस्वी राजा
तिन के काज सकल तुम साजा॥२७॥

और मनोरथ जो कोई लावै
सोई अमित जीवन फल पावै॥२८॥

चारों जुग परताप तुम्हारा
है परसिद्ध जगत उजियारा॥२९॥

साधु संत के तुम रखवारे
असुर निकंदन राम दुलारे॥३०॥

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता
अस बर दीन जानकी माता॥३१॥

राम रसायन तुम्हरे पासा
सदा रहो रघुपति के दासा॥३२॥

तुम्हरे भजन राम को पावै
जनम जनम के दुख बिसरावै॥३३॥

अंतकाल रघुवरपुर जाई
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई॥३४॥

और देवता चित्त ना धरई
हनुमत सेई सर्व सुख करई॥३५॥

संकट कटै मिटै सब पीरा
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥३६॥

जै जै जै हनुमान गोसाई
कृपा करहु गुरु देव की नाई॥३७॥

जो सत बार पाठ कर कोई। 
छूटहिं बंदि महा सुख होई॥३८॥

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
 होय सिद्धि साखी गौरीसा॥३९॥

तुलसीदास सदा हरि चेरा।
 कीजै नाथ हृदय मह डेरा॥४०॥

पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
 राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥
       ##जय श्री राम ##

अकारण मित्र शत्रु

जीवन में हम देखते हैं कि कुछ लोंगों को देखकर ही हम में आत्मीयता
आ जाती है, और किसी को देखकर चिढ़ (इसके अनेक कारण होते हैं) 

 एक कारण यह भी है कि
आपकी राशि का स्वामित्व करने वाला ग्रह और सामने वाले की राशि का स्वामित्व करने वाला ग्रह , आपस में क्या व्यवहार रखते हैं, , (पर जन्मराशि होनी चाहिए) शत्रु, मित्र अथवा समान.
यदि दो लोगों के ग्रह आपस में शत्रु हैं तो अकारण द्वेष का यह भी कारण हो सकता है
सूर्य के मित्र – वृ. मं चन्द्र
2. चंद्रमा के मित्र – सूर्य बुध
3. मंगल के मित्र – सू. च. वृ.
4. बुध के मित्र – सूर्य, शुक्र, राहु,
5. बृहस्पति के मित्र – सू. च. मं
6. शुक्र के मित्र – श. बु. के.
7. शनि के मित्र – बुध-शुक्र-राहु
8. राहु के मित्र – बु. श. के.
9. केतु के मित्र – शु. राहु
शत्रु –
1. सूर्य – शुक्र, शनि, राहु
2. -चन्द्र – केतु, राहु
3. मंगल – बुध, केतु
4. बुध – चंद्रमा
5. बृहस्पति – शुक्र, बुध
6. शुक्र – सूर्य , चन्द्र, राहु
7. शनि – सूर्य , चन्द्र , मंगल
8. राहु – सूर्य , शुक्र, मंगल
9. केतु – चन्द्र , मंगल
सामान्य –
सूर्य- बुध
चन्द्र – शुक्र, शनि , मंगल , बृहस्पति
मंगल – शुक्र, शनि
बुध – शनि , मंगल, बृहस्पति, केतु
बृहस्पति – रा. के. शनि
शुक्र – मं, बृहस्पति
शनि- केतु ,बृहस्पति
राहु – बृहस्पति , चंद्रमा ,

केतु – वृ. श, बु. सू