कुण्डली फलीदेश करते समय ग्रहों का अस्त का ध्यान अवश्य रखें
चन्द्र १२° तक , मंगल १७°, बुध १३° गुरु ११° शुक्र ९° शनि १५° तक सूर्य के पास हों तो अस्त होते हैं,
अस्त होते हैं यह नारद पुराण का मत है,
नारद पुराण, पूर्वाद्ध श्लोक १६३.
भृगु संहिता के अनुसार ८°से कम दूरी वाले गृह अस्त ८ से १५° तक आधा अस्त और १५° से ज्यादा दूरी वाले पूर्ण उदय कहलाते हैं,
अस्त ग्रह सूर्य मित्र है तो कम हानि यदि शत्रु हो तो अधिक हानि करेगा।
अस्त ग्रहों को सुचारू रूप से कार्य करने के लिए अतिरिक्त बल की आवश्यकता होती है तथा कुंडली में किसी अस्त ग्रह का स्वभाव देखने के बाद ही यह निर्णय किया जाता है कि उस अस्त ग्रह को अतिरिक्त बल कैसे प्रदान किया जा सकता है।
यदि किसी कुंडली में कोई ग्रह अस्त होने के साथ-साथ प्रकृति से शुभ फलदायी है तो उसे अतिरिक्त बल प्रदान करने का सबसे सरल व प्रभावशाली उपाय है, जातक को उस ग्रह विशेष का रत्न धारण करवाना। रत्न का वज़न अस्त ग्रह की बलहीनता का सही अनुमान लगाने के बाद ही निर्धारित किया जाता है। रत्न धारण से अस्त ग्रह को अतिरिक्त बल मिल जाता है और वह अपना कार्य भलीभांति करता है।
किन्तु यदि किसी कुंडली में कोई ग्रह अस्त होने के साथ साथ प्रकृति से अशुभ फलदायी है तो ऐसे ग्रह को रत्न द्वारा अतिरिक्त बल प्रदान नहीं कर सकते हैं। ऐसी स्थिति में रत्न का प्रयोग वर्जित है,
!! जय श्री राम !!
चन्द्र १२° तक , मंगल १७°, बुध १३° गुरु ११° शुक्र ९° शनि १५° तक सूर्य के पास हों तो अस्त होते हैं,
अस्त होते हैं यह नारद पुराण का मत है,
नारद पुराण, पूर्वाद्ध श्लोक १६३.
भृगु संहिता के अनुसार ८°से कम दूरी वाले गृह अस्त ८ से १५° तक आधा अस्त और १५° से ज्यादा दूरी वाले पूर्ण उदय कहलाते हैं,
अस्त ग्रह सूर्य मित्र है तो कम हानि यदि शत्रु हो तो अधिक हानि करेगा।
अस्त ग्रहों को सुचारू रूप से कार्य करने के लिए अतिरिक्त बल की आवश्यकता होती है तथा कुंडली में किसी अस्त ग्रह का स्वभाव देखने के बाद ही यह निर्णय किया जाता है कि उस अस्त ग्रह को अतिरिक्त बल कैसे प्रदान किया जा सकता है।
यदि किसी कुंडली में कोई ग्रह अस्त होने के साथ-साथ प्रकृति से शुभ फलदायी है तो उसे अतिरिक्त बल प्रदान करने का सबसे सरल व प्रभावशाली उपाय है, जातक को उस ग्रह विशेष का रत्न धारण करवाना। रत्न का वज़न अस्त ग्रह की बलहीनता का सही अनुमान लगाने के बाद ही निर्धारित किया जाता है। रत्न धारण से अस्त ग्रह को अतिरिक्त बल मिल जाता है और वह अपना कार्य भलीभांति करता है।
किन्तु यदि किसी कुंडली में कोई ग्रह अस्त होने के साथ साथ प्रकृति से अशुभ फलदायी है तो ऐसे ग्रह को रत्न द्वारा अतिरिक्त बल प्रदान नहीं कर सकते हैं। ऐसी स्थिति में रत्न का प्रयोग वर्जित है,
!! जय श्री राम !!