क्या सीताजी का पुनः वनगमन नहीं हुआ !
आज यह प्रश्न फिर उठा है, क्योंकि कुछ बड़े सन्तों ने और कवि से राजनेता बने और कथावाचक बनने का प्रयास करने वालों ने कहा , ऐसा हुआ ही नहीं यह मिलावट हुई है । और यदि है तो तुलसीदास जी ने क्यों नहीं लिखा (तो अन्य ग्रंथों में तो लिखा है उसके प्रमाण क्रमशः देंगें)
पर जानते हैं इस पर संदेह फैलाने वाले पहले व्यक्ति
1949 में कामिल बुल्के(पादरी) ने लिखा था बाल्मीकि रामायण में उत्तर काण्ड प्रक्षिप्त(मिलावट है) ! सीता परित्याग/लवकुश का वन में जन्म हुआ ही नहीं । (तर्कों के साथ)
उस समय उत्तर मिला था - वस्तुतः ऐसे कथन उत्तरदायित्व हीन हैं, किसी ठोस प्रमाण के अभाव में किसी भी ग्रंथ के किसी भी अंश को मिलावट कह देना, और उन्हीं अंशों में से अपने स्वार्थानुसार कुछ अंशों को स्वीकार कर लेना साभिप्राय कुतर्क ही है,
कहने वाले से पूछा जाये किसने मिलावट की क्यों की कब की किस वर्ष मास तिथि में तो उत्तर नहीं दे पायेंगे ।
• उत्तर काण्ड (सीता परित्याग इत्यादि ) को प्रक्षिप्त (मिलावट) कह देना, अर्ध कुक्कुटी न्याय है,
• और फिर पूर्णतः तर्कों के साथ इसका खण्डन करने वालेथे ब्रह्मलीन
धर्म सम्राट जगद्गुरु स्वामी श्री करपात्री जी महाराज
आगे क्रमशः प्रमाण मिलेंगे, और जो ऊपर लिखा है उसका भी नि:संदेह प्रमाण मांग सकते हैं ।
क्रमशः !
अब आते हैं, उनके दूसरे तर्क पर
कि बाल्मीकि रामायण में लिखा है, गर्भवती श्री सीता परित्याग/लवकुश का वन में जन्म पर तुलसीदास जी ने नहीं लिखा (इसलिये मानते हैं कि बाल्मीकि रामायण में मिलावट हुई है)
उत्तर - ठीक कहा तुलसीकृत रामचरितमानस में नहीं लिखा पर उसमें बहुत सी बातें नहीं लिखीं, जैसे शत्रुघ्न जी द्वारा लवणासुर को मारकर मथुरा पुरी बसाना आदि। तो क्या यह सभी असत्य है ।
कहाँ लिखा है, यद्यपि यहाँ बाल्मीकि रामायण के प्रमाण नहीं देगें क्योंकि आप उसे प्रक्षिप्त मानते हैं,
• श्रीमद्भागवत नवम् स्कन्ध अध्याय 11, 8 से 11 श्लोकों में देखिये स्पष्ट लिखा है, श्रीराम द्वारा लोकोपवाद के भय से श्री सीता जी का गर्भावस्था में परित्याग, बाल्मीकि आश्रम में ही लवकुश जन्म ।
• अग्निपुराण 11वाँ अध्याय, 10 से 13वें श्लोक तक, उपरोक्त लिखा हुआ स्पष्ट लिखा है ।
• पद्मपुराण पाताल खण्ड, में स्पष्ट रूप से इसी वर्णन के साथ धोबी के पूर्वजन्म व माता सीता को श्राप लगने का वर्णन है श्रीराम अश्वमेध यज्ञ प्रसंग में (संक्षिप्त पद्मपुराण geetaprees page 513-519)
और फिर भी ना मानें तो बतायें, रामायण में 24000 श्लोक हैं, जिनकी संख्या पुराणों में उल्लेखित है, तो यदि 500-600श्लोक मिलावट हैं, तो अब भी संख्या 24000 क्यों,? क्रमशः,,,
तृतीय- श्रीसीता परित्याग(पुनः वन गमन) और लवकुश का जन्म वन में, हुआ ही नहीं, उत्तर काण्ड प्रक्षिप्त (मिलावट) है, ऐसा कुछ विद्वान कहते हैं, --- प्रसंग में क्रमशः,,,,,
पिछले भाग में, पुराणों से प्रमाण दिया कि श्रीसीता परित्याग(धोबी ने अपशब्द कहे) और लवकुश जन्म वन में, यह वहाँ भी लिखा है । अब वो कह सकते हैं, पुराणों में भी मिलावट हो सकती है।
तो आपको ज्ञात होगा महाकवि कालिदास जी द्वारा रचित रघुवंश महाकाव्य में भी यही लिखा है कुछ श्लोक देखते हैं,
यह प्रमाण, 14वें सर्ग के 31 वें श्लोक से प्रारम्भ होकर ,15 वें सर्ग में भी है । वही सब लिखा है सीता परित्याग लवकुश जन्म उत्तर काण्ड,
अब क्या कहेंगे यह भी प्रक्षिप्त है यहाँ भी मिलावट है ? पर
वस्तुतः कोई मिलावट नहीं है, उत्तर काण्ड सहित पुरी बाल्मीकि रामायण वही है, जो बाल्मीकि जी ने लिखी ।
क्रमशः,,,,,
आज यह प्रश्न फिर उठा है, क्योंकि कुछ बड़े सन्तों ने और कवि से राजनेता बने और कथावाचक बनने का प्रयास करने वालों ने कहा , ऐसा हुआ ही नहीं यह मिलावट हुई है । और यदि है तो तुलसीदास जी ने क्यों नहीं लिखा (तो अन्य ग्रंथों में तो लिखा है उसके प्रमाण क्रमशः देंगें)
पर जानते हैं इस पर संदेह फैलाने वाले पहले व्यक्ति
1949 में कामिल बुल्के(पादरी) ने लिखा था बाल्मीकि रामायण में उत्तर काण्ड प्रक्षिप्त(मिलावट है) ! सीता परित्याग/लवकुश का वन में जन्म हुआ ही नहीं । (तर्कों के साथ)
उस समय उत्तर मिला था - वस्तुतः ऐसे कथन उत्तरदायित्व हीन हैं, किसी ठोस प्रमाण के अभाव में किसी भी ग्रंथ के किसी भी अंश को मिलावट कह देना, और उन्हीं अंशों में से अपने स्वार्थानुसार कुछ अंशों को स्वीकार कर लेना साभिप्राय कुतर्क ही है,
कहने वाले से पूछा जाये किसने मिलावट की क्यों की कब की किस वर्ष मास तिथि में तो उत्तर नहीं दे पायेंगे ।
• उत्तर काण्ड (सीता परित्याग इत्यादि ) को प्रक्षिप्त (मिलावट) कह देना, अर्ध कुक्कुटी न्याय है,
• और फिर पूर्णतः तर्कों के साथ इसका खण्डन करने वालेथे ब्रह्मलीन
धर्म सम्राट जगद्गुरु स्वामी श्री करपात्री जी महाराज
आगे क्रमशः प्रमाण मिलेंगे, और जो ऊपर लिखा है उसका भी नि:संदेह प्रमाण मांग सकते हैं ।
क्रमशः !
अब आते हैं, उनके दूसरे तर्क पर
कि बाल्मीकि रामायण में लिखा है, गर्भवती श्री सीता परित्याग/लवकुश का वन में जन्म पर तुलसीदास जी ने नहीं लिखा (इसलिये मानते हैं कि बाल्मीकि रामायण में मिलावट हुई है)
उत्तर - ठीक कहा तुलसीकृत रामचरितमानस में नहीं लिखा पर उसमें बहुत सी बातें नहीं लिखीं, जैसे शत्रुघ्न जी द्वारा लवणासुर को मारकर मथुरा पुरी बसाना आदि। तो क्या यह सभी असत्य है ।
कहाँ लिखा है, यद्यपि यहाँ बाल्मीकि रामायण के प्रमाण नहीं देगें क्योंकि आप उसे प्रक्षिप्त मानते हैं,
• श्रीमद्भागवत नवम् स्कन्ध अध्याय 11, 8 से 11 श्लोकों में देखिये स्पष्ट लिखा है, श्रीराम द्वारा लोकोपवाद के भय से श्री सीता जी का गर्भावस्था में परित्याग, बाल्मीकि आश्रम में ही लवकुश जन्म ।
• अग्निपुराण 11वाँ अध्याय, 10 से 13वें श्लोक तक, उपरोक्त लिखा हुआ स्पष्ट लिखा है ।
• पद्मपुराण पाताल खण्ड, में स्पष्ट रूप से इसी वर्णन के साथ धोबी के पूर्वजन्म व माता सीता को श्राप लगने का वर्णन है श्रीराम अश्वमेध यज्ञ प्रसंग में (संक्षिप्त पद्मपुराण geetaprees page 513-519)
और फिर भी ना मानें तो बतायें, रामायण में 24000 श्लोक हैं, जिनकी संख्या पुराणों में उल्लेखित है, तो यदि 500-600श्लोक मिलावट हैं, तो अब भी संख्या 24000 क्यों,? क्रमशः,,,
तृतीय- श्रीसीता परित्याग(पुनः वन गमन) और लवकुश का जन्म वन में, हुआ ही नहीं, उत्तर काण्ड प्रक्षिप्त (मिलावट) है, ऐसा कुछ विद्वान कहते हैं, --- प्रसंग में क्रमशः,,,,,
पिछले भाग में, पुराणों से प्रमाण दिया कि श्रीसीता परित्याग(धोबी ने अपशब्द कहे) और लवकुश जन्म वन में, यह वहाँ भी लिखा है । अब वो कह सकते हैं, पुराणों में भी मिलावट हो सकती है।
तो आपको ज्ञात होगा महाकवि कालिदास जी द्वारा रचित रघुवंश महाकाव्य में भी यही लिखा है कुछ श्लोक देखते हैं,
यह प्रमाण, 14वें सर्ग के 31 वें श्लोक से प्रारम्भ होकर ,15 वें सर्ग में भी है । वही सब लिखा है सीता परित्याग लवकुश जन्म उत्तर काण्ड,
अब क्या कहेंगे यह भी प्रक्षिप्त है यहाँ भी मिलावट है ? पर
वस्तुतः कोई मिलावट नहीं है, उत्तर काण्ड सहित पुरी बाल्मीकि रामायण वही है, जो बाल्मीकि जी ने लिखी ।
क्रमशः,,,,,