पुराणों और संहिताओं में वर्णित (मारतण्ड)
"सर्प श्राप" दोष जिसके कारण पुत्र प्राप्ति में बाधा या असमय पुत्र क्षय हो जाता है,
पुत्र स्थानेगते राहौ कुजेनापि निरीक्षते |
कुजक्षेत्र गते वापि सर्प शपात् सुतक्षय: ||
पंचम स्थान में राहु हो मंगल देखे या मंगल की राशि में है तो सर्प शाप के कारण संतान की हानि होती है,
पुत्रेशे राहुसंयुक्ते पुत्रस्थे भानु नन्दने |
चन्द्रदृष्टे युते वापि सर्प शापात सुतक्षय: ||
पंचमेश राहु के साथ ,पंचम भाव में शनि चंद्र से युक्त हो बैठा है तो सर्प शाप.
कारके राहु संयुक्ते पुत्रेशे बलविवर्जिते |
विलग्नेशे भौमयुते सर्प शापात सुत क्षय: ||
कारक ग्रह गुरु के साथ यदि राहु हो पंचमेश बलहीन हो (अस्त अथवा नीच हो) और लग्नेश मंगल से युत हो तो सर्प शाप दोष
कारके भौम संयुक्ते लग्ने च राहुसंयुते |
पुत्रस्थानेश्वरे दुस्थे सर्प सापात सुत क्षय : ||
लग्न में राहु, गुरु मंगल से युक्त और पंचमेश ६,८,१२, भाव में हो तो सर्प शाप दोष,
गुरु राहु दृष्ट हो , पंचमेष मंगल के साथ हो तो सर्प श्राप
पंचम भाव में सूर्य शनि मंगल राहु बुध गुरु साथ हों , पंचमेश व लग्नेश निरबल हों तो सर्प श्राप दोष.
यदि पंचम भाव में ७या८ राशि पर राहु हो और बुध से दृष्ट हो तो सर्प श्राप दोष ,
हमने जब कालसर्प योग को नकारा , तो कुछ विद्वानों ने कहा कि पुराणों में , कालसर्प दोष को ही सर्प दोष बताया गया है, उसी के निराकरण हेतु सर्प दोष पर यह लेख है,
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