केमुद्रम योग- ( जिस समय यह योग प्रभावी हो व चन्द्रमा कमजोर पड़े )
नारद पुराण, व अन्य प्राचीन ग्रंथों में इसका उल्लेख है(अाप बेहिचक मुझसे प्रमाण मांग सकते हैं )
किसी कुण्डली में चन्द्रमा से द्वितीय एंव द्वादश स्थान मे जब कोई ग्रह स्थित न हो तो केमुद्रम नाम का दरिद्रतादायक योग बनता है। जब चन्द्रमा किसी ग्रह से युत व दृष्ट न हो और अगले एंव पिछले केन्द्रों में कोई ग्रह स्थित न हो तो भी केमुद्रम नाम के योग का निर्माण होता है।
कारण-
चन्द्रमा जॅहा पर बैठा होता है, उसे चन्द्र लग्न कहते है। धन प्राप्ति में अन्य लग्नों की भाॅति चन्द्र लग्न का विशेष महत्व है। चन्द्र के विषय में यह सिद्धान्त मौलिक रूप से समझ लेना चाहिए कि यदि चन्द्र किसी भी ग्रह के प्रभाव में न हो तो वह निर्बल समझा जाना चाहिए और निर्बल चन्द्र का अर्थ है लग्न का निर्बल होना अर्थात मनुष्य का धन, स्वास्थ्य, यश, बल आदि से वर्जित होना।
सरावली ग्रन्थ में कहा गया है-
कान्तान्नपानगुहवस्त्रसुह्रद्विहीनो,
दारिद्रयदुः खगददैन्यमलैरूपेतः।
प्रेष्यः खलः सकललोकविरूद्धवृतिः,
केमुद्रमे भवति पार्थिववंशजोपि।।
अर्थात यदि कुण्डली में केमुद्रम योग हो तो स्त्री-पुरूष अन्न, पान, गृह, वस्त्र व बन्धुजनों से विहीन होकर दरिद्रता, दुःख, रोग, परतन्त्रता से युक्त, दूसरों से द्वेष करने वाला, दुष्ट एंव दूसरें लोगों का अनिष्ट करने वाला होता है।
बृहत्पाराशर में है
यह योग नारद पुराण में भी वर्णित है ।
यदि यह योग किसी कुंडली मेॆ मिले तो , अग्निपुराणोक्त महामृत्यंजय, १२५००० , नित्य दशांश हवन , तथा श्री यंत्रार्चन , किशमिस द्वारा खुद करें अथवा किसी श्रीविद्या साधक द्वारा करायें . .. ... . जय महाकाल ..
नारद पुराण, व अन्य प्राचीन ग्रंथों में इसका उल्लेख है(अाप बेहिचक मुझसे प्रमाण मांग सकते हैं )
किसी कुण्डली में चन्द्रमा से द्वितीय एंव द्वादश स्थान मे जब कोई ग्रह स्थित न हो तो केमुद्रम नाम का दरिद्रतादायक योग बनता है। जब चन्द्रमा किसी ग्रह से युत व दृष्ट न हो और अगले एंव पिछले केन्द्रों में कोई ग्रह स्थित न हो तो भी केमुद्रम नाम के योग का निर्माण होता है।
कारण-
चन्द्रमा जॅहा पर बैठा होता है, उसे चन्द्र लग्न कहते है। धन प्राप्ति में अन्य लग्नों की भाॅति चन्द्र लग्न का विशेष महत्व है। चन्द्र के विषय में यह सिद्धान्त मौलिक रूप से समझ लेना चाहिए कि यदि चन्द्र किसी भी ग्रह के प्रभाव में न हो तो वह निर्बल समझा जाना चाहिए और निर्बल चन्द्र का अर्थ है लग्न का निर्बल होना अर्थात मनुष्य का धन, स्वास्थ्य, यश, बल आदि से वर्जित होना।
सरावली ग्रन्थ में कहा गया है-
कान्तान्नपानगुहवस्त्रसुह्रद्विहीनो,
दारिद्रयदुः खगददैन्यमलैरूपेतः।
प्रेष्यः खलः सकललोकविरूद्धवृतिः,
केमुद्रमे भवति पार्थिववंशजोपि।।
अर्थात यदि कुण्डली में केमुद्रम योग हो तो स्त्री-पुरूष अन्न, पान, गृह, वस्त्र व बन्धुजनों से विहीन होकर दरिद्रता, दुःख, रोग, परतन्त्रता से युक्त, दूसरों से द्वेष करने वाला, दुष्ट एंव दूसरें लोगों का अनिष्ट करने वाला होता है।
बृहत्पाराशर में है
यह योग नारद पुराण में भी वर्णित है ।
यदि यह योग किसी कुंडली मेॆ मिले तो , अग्निपुराणोक्त महामृत्यंजय, १२५००० , नित्य दशांश हवन , तथा श्री यंत्रार्चन , किशमिस द्वारा खुद करें अथवा किसी श्रीविद्या साधक द्वारा करायें . .. ... . जय महाकाल ..