/* ######## Share widget Css by RSharma Design ######################### */ .share-box { position: relative; padding: 10px; } .share-title { color: #010101; display: inwhe-block; padding-bottom: 7px; font-size: 15px; font-weight: 500; position: relative; top: 2px; float: left; padding-right: 10px; } .share-art { float: left; padding: 0; padding-top: 0; font-size: 13px; font-weight: 400; text-transform: capitalize; } .share-art a { color: #fff; padding: 5px 10px; margin-left: 4px; border-radius: 2px; display: inwhe-block; margin-right: 0; background: #010101; } .share-art i {color:#fff;} .share-art a:hover{color:#fff} .share-art .fac-imh-art{background:#3b5998} .share-art .fac-imh-art:hover{background:rgba(49,77,145,0.7)} .share-art .twi-imh-art{background:#00acee} .share-art .twi-imh-art:hover{background:rgba(7,190,237,0.7)} .share-art .goo-imh-art{background:#db4a39} .share-art .goo-imh-art:hover{background:rgba(221,75,56,0.7)} .share-art .pin-imh-art{background:#CA2127} .share-art .pin-imh-art:hover{background:rgba(202,33,39,0.7)} .share-art .wh-imh-art{background:#06A400} .share-art .wh-imh-art:hover{background:rgba(0,119,181,0.7)} .share-box .post-author { float: right; } .share-box .post-author i { font-family: Montserrat; font-weight: 700; font-style: normal; letter-spacing: 1px; } .sora-author-box { border: 1px solid #f2f2f2; background: #f8f8f8; overflow: hidden; padding: 10px; margin: 10px 0; } .sora-author-box img { float: left; margin-right: 10px; border-radius: 50%; } .sora-author-box p { padding: 10px; } .sora-author-box b { font-family: Montserrat; font-weight: 700; font-style: normal; letter-spacing: 1px; font-size: 20px;

मंगलवार, 14 मार्च 2017

क्या मूर्ति पूजा वेद विरुद्ध है, आर्यसमाज/जाकिर नाइक

कुछ मूर्खों ने ( जाकिर नाईक, स्वघोषित आर्य जैसे)
कहा कि मूर्ति पूजा वेद विरुद्ध है ,
(और मूर्ति पूजकों को गाली देते हैं हमें मूर्ख समझते हैं )
     
मूर्खो..!

भगवान् जगन्नाथ की दारुमयी मूर्ति का सुस्पष्ट उल्लेख ऋग्वेद में है-
“अदो यद्दारु प्लवते सिन्धो: पारे अपूरुषम् ।”
-अ.-१०/१५५/३,
“वह दूर समुद्र के किनारे दारुमय जगन्नाथ भगवान् का शरीर जल के ऊपर है ।”
यहां काष्ठमयी प्रतिमा का प्रमाण जाकिर नाइक (जो इसी मंत्र का प्रमाण लेकर वेद द्वारा मूर्ति पूजा खंडन बताकर हिन्दू धर्म का अपमान करता है ) की नाक में नकेल डाल रहा हूँ
“न तस्य प्रतिमाSस्ति” का विवेचन
प्रतिमा का अर्थ उपमा, उपमान और सदृश भी होता है

वेद स्वयं मूर्तिपूजा का प्रतीक दृष्टिगोचर होते हैं क्योंकि उन्हें ईश्वर प्रदत्त ज्ञान माना जाता है। अनेक वेद-मंत्र इसकी साक्षी देते है। अथर्ववेद 3/10/3 में उल्लेख है-
“संवत्सरस्य प्रतिमा याँ त्वा रात्र्युपास्महे। सा न आयुश्मतीं प्रजाँ रायस्पोशेण सं सृज॥”
अर्थात् “ हे रात्रे ! संवत्सर की प्रतिमा ! हम तुम्हारी उपासना करते हैं। तुम हमारे पुत्र-पौत्रादि को चिर आयुष्य बनाओ और पशुओं से हमको सम्पन्न करो।”
अथर्ववेद 2/13/4 में प्रार्थना है- एह्याश्मा तिष्ठाश्मा भवतु ते तनूः ० “हे भगवान! आइये और इस पत्थर की बनी मूर्ति में अधिष्ठित होइये। आपका यह शरीर पत्थर की बनी मूर्ति हो जाये।”
मा असि प्रमा असि प्रतिमा असि | [तैत्तीरिय प्रपा० अनु ० ५ ]
हे महावीर तुम इश्वर की प्रतिमा हो |
सह्स्त्रस्य प्रतिमा असि | [यजुर्वेद १५.६५]
हे परमेश्वर , आप सहस्त्रो की प्रतिमा [मूर्ति ] हैं |
अर्चत प्रार्चत प्रिय्मेधासो अर्चत | (अथर्ववेद-20.92.5)
हे बुद्धिमान मनुष्यों उस प्रतिमा का पूजन करो,भली भांति पूजन करो |
ऋषि नाम प्रस्त्रोअसि नमो अस्तु देव्याय प्रस्तराय| [अथर्व ० १६.२.६ ]
हे प्रतिमा,, तू ऋषियों का पाषण है तुझ दिव्य पाषण के लिए नमस्कार है |
गणपति अथर्व शीर्षम् की फलश्रुती है-
"सूर्यग्रहे महानद्यां प्रतिमासन्निधौ वा जप्त्वा सिद्धमनत्रो भवति ।।"
- सूर्यग्रहणके समय महानदीमें अथवा ***प्रतिमाके*** निकट इस उपनिषद्का जप करके साधक सिद्धमन्त्र हो जाता है ।
इसी प्रकार देवी अथर्वशीर्षम् की फलश्रुती है -
निशीथे तुरीयसन्ध्यायां जप्त्वा वाक्सिद्धिर्भवति । नूतनायां प्रतिमायां जप्त्वा देवतासान्निध्यं भवति । प्र्ाणप्रतिष्ठा
यां जप्त्वा प्राणानां प्रतिष्ठा भवति ।।
प्रतिमा में शक्ति का अधिष्ठान किया जाता है, प्राणप्रतिष्ठा की जाती है। सामवेद के 36 वें ब्राह्मण में उल्लेख है-
“देवतायतनानि कम्पन्ते दैवतप्रतिमा हसन्ति। रुदान्त नृत्यान्त स्फुटान्त स्विद्यन्त्युन्मालान्त निमीलन्ति॥
अर्थात्- देवस्थान काँपते हैं, देवमूर्ति हँसती, रोती और नृत्य करती हैं, किसी अंग में स्फुटित हो जाती है, वह पसीजती है, अपनी आँखों को खोलती और बन्द भी करती है।

         
.



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें