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सोमवार, 20 फ़रवरी 2017

बगलामुखी प्राकट्य व महत्व

                                          माँ






दस महाविद्याओं में अष्टम स्वरूप माता बगलामुखी का है। इनका ध्यान बगुला पक्षी की तरह एकाग्र है। इसलिए इन्हें बगलामुखी कहते हैं।
नवरात्र की पंचमी से ही महाविद्या की पूजार्चना का क्रम प्रारम्भ हो जाता है। मंगलवार को केवल हनुमान जी की ही पूजा नहीं होती। मंगल करने वाली देवी पीतांबरा यानी बगुलामुखी को भी मंगल प्रिय है। यदि आप किसी मुकदमे में फंसे हैं, शत्रुओं से त्रस्त हैं, घर में कोई मुश्किल है और उसका निदान नहीं हो रहा है या अपनी संतान को लेकर चिंतित हैं तो मां पीतांबरा आपका कल्याण करेंगी।

मां पीतांबरा देवी का  प्राकट्य सांख्य   तंत्र और मेरू तंत्र में दो कथाओं का वर्णन किया गया है। कहा जाता है कि क्षीर सागर में विश्राम करते हुए भगवान लक्ष्मीनारायण विष्णु जी को जब संसार में अपने भक्तों की रक्षा की चिंता हुई। तब उन्होंने कठोर तपस्या की, जिससे सौराष्ट्र के पीत सरोवर में महात्रिपुर सुंदरी के तेज से पीतांबरा देवी का आर्विभाव वीर रात्रि के रूप में हुआ। सूर्य मकर राशिस्थ होने पर मंगलवार के दिन चतुर्दशी हो और उसी दिन कुल नक्षत्र पड़े तो उसे वीर रात्रि कहा जाता है। इसी रात्रि में मां पीतांबरा बगलामुखी का अविर्भाव हुआ था। कहा जाता है कि महाप्रलय के समय भयंकर तूफान आया। उस दौरान देवाधिदेव भगवान शंकर से संसार की रक्षा के लिए सभी देवी-देवताओं ने प्रार्थना की। तब भगवान शंकर के तीसरे नेत्र से एक अद्भुत शक्ति का पार्दुभाव हुआ, जिसे बगलामुखी परा शक्ति के नाम से जाना गया। इसे बगलामुखी देवता भी कहा जाता है। मंगलवार को करें पूजा मंगलवार चतुर्दशी बीर रात्रि विख्यात कुल नक्षत्र मकार में प्रगटि बगला मां। महाविद्या में देवी आठवां स्वरूप हैं। इनकी आराधना रात्रिकालीन है।
 बगुलामुखी की आराधना विधि-विधान जानकर ही करनी चाहिए।


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