थोड़ा धैर्य धारण करके पढ़ें, बात कड़वी है
आजकल कालसर्प का बहुत ही भय व्याप्त है.जबकि कालसर्प कोई योग नहीं है.ना किसी ग्रन्थ में और नहीं कहीं इसका जिक्र है न किसी पुराण नही किसी संहिता भृगु वशिष्ठ रावण वाराहमिहिर बृहस्पति सभी ज्योतिषीय विद्वान थे सबने अनेक योगों का वर्णन किया पर कालसर्पयोग का क्यु नहीं ,
क्या उस समय सभी ग्रह राहु केतु के बीच नहीं आते थे, किसी महर्षि ने कालसर्प योग का जिक्र नहीं किया
कुछ वर्षों पहले एक राजस्थान के प्रसिद्घ ज्योतिषी व तांत्रिक , जिनहोंने अपना महिमामण्डन में स्वयं को अवतार घोषित कर दिया , उनने इस योग की रचना करदी, और कुछ इनके पीछे कुछ चल पड़े और आज १४४ प्रकार के कालसर्प बन भी गए , और कुछ आजके ज्योतिषीयों ने भी अपनी पुस्तकों में बढ़ा चढ़ा कर लिख दिया , आलम यह है कि १० ज्योतिष की पुस्तक लें एक ही ग्हयोग का विभिन्न फल आपको मिलेगा.
आज ज्योतिषीयों को लोग लुटेरा कहते हैं , ऐसा नहीं कि उस समय इस योग का विरोध नहीं हुआ बहुत विरोध हुआ , पर "आपकी उन्नति में बाधा" यह इतना भयवाचक है कि किसीने उस विरोध पर ध्यान नहीं दिया,
आज शनि की शाड़ेसाती से लोग डरें न डरें ( जिसका प्रभाव पुराणों में विस्तार पूर्वक है , तुसीदास जी ने भी कवितावली में वर्णन किया है)
जिससे डरना चाहिए चाहिए
पर कालसर्प योग हर चौथे पाँचवें व्यक्ति के डरका कारण बन गया. जिसका कोई प्रमाण ही नहीं,
लोग कहेंगे सरप साप लिखा है
.कहा गया "सर्पशाप" का वर्णन तो है पुराणों में कहीं वहीं तो कालसर्प योग नहीं ?
नहीं सर्पशाप योग काल सर्प से पूरी तरह भिन्न है.
हाँ
सर्पशाप का हर जगह वर्णन है. पुत्र कारक गुरू अगर राहू से पीड़ित,या युति से है,तो चांडाल तथा सर्पशाप योग बनता है.जिसका दुष्परिणाम देखने में आते है. पुत्र कारक गुरू ,राहू से युक्त हो तथा शनि से पंचम पीड़ित या दृष्टगत है तो संतान उत्पत्ति में बाधा आती है. लग्नेश राहू से युत हो तो बाधा है . पंचमेश मंगल से युत हो तथा राहू गुरू से दृष्ट होने पर संतान बाधा होती है. कर्क,धनु लग्न में पंचम भाव में राहू बुध दृष्ट या युति से है तो संतान बाधा उत्पन्न होती है. पंचम में राहू हो और मंगल उसे ४-८- की दृष्टी से देखे तो बाधा आती है.ग्रन्थों में कहा भी गया की, "सुते राहौ भौमदृष्टे सर्पशापात सुतक्षयः" पंचम में शनि हो पंचमेश राहू से युत हो,तथा चन्द्रमा उसे देखता हो भी संतान बाधा उत्पन्न हो जाती है. यमे सुते चन्द्र दृष्टे सुतेशे राहुयुते सर्पशापत: . यह तो सर्व विदित है की राहू गुरू की युति या सम्बन्ध अभाव का कारक है चाहे विवाह हो या फिर संतान की उत्पत्ति.इसे इस तरह से भी समझा जा सकता है.गुरू जहां है खराब है जबकि राहू जहां है अच्छा है.और दृष्टी में गुरू अच्छा है तो राहू खराब है यानिकी गुरू के फल को राहू खराब कर देता है. हालांकि अभी और भी कारण हैं
.उसकी फिर कभी चर्चा करूँगा........ पिछली सदी के प्रसिद्ध ज्योतिषी स्वर्गीय डॉक्टर बीवी रमन, ने कालसर्प योग को सिरे से नकार दिया था। वह 60 वर्ष तक एस्ट्रोलॉजिकल-मैगजीन के संपादक रहे थे। वहीं (ज्योतिषी केएन राव के अनुसार* भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, इंग्लैंड की एकमात्र महिला प्रधानमंत्री रहीं मार्गरेट थेचर, अमेरिका के भूतपूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश को काल सर्प दोष था, लेकिन इन्होंने सफलता के नए सोपान अर्जित किए। ) ऐसे अनेक प्रसिद्ध व्यक्तियों की कुंडलियों में राहु-केतु के मध्य में सभी ग्रह थे, जिसे कुछ ज्योतिषी कालसर्प योग की मानते देते हैं, किन्तु फिर भी वह सब अपने जीवन में बड़ी उपलब्धियों को पाने में सफल हुए। .
प्रश्न उठा ,
महाराजा विक्रमादित्य, महाराजा हरिश्चन्द्र, महाराजा नल इत्यादि महापुरुषों को अपने जीवन काल में कालसर्प दोष के प्रभाव को सहना पड़ा था...??? यदि नहीं तो फिर उनके द्वारा सर्वसमर्थ होने पर भी क्यों कठिन यातनाये भोगनी पड़ी..??
इसका उत्तर है - शनि की दशा
शनि चालीसा , का अंश देखते हैं
नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा। चित्र मयूर निगलि गै हारा॥
हार नौलखा लाग्यो चोरी। हाथ पैर डरवाय तोरी॥4॥
भारी दशा निकृष्ट दिखायो। तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो॥ विनय राग दीपक महं कीन्हयों। तब प्रसन्न प्रभु ह्वै सुख दीन्हयों॥
हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी। आपहुं भरे डोम घर पानी॥ तैसे नल पर दशा सिरानी। भूंजीमीन कूद गई पानी॥5॥
इन सबके दुख का कारण शनि की साड़ेेसाती है
यदि इस समय कालसर्प वाली कुण्डली की गड़ना की जाये तो फिर एक शदी में जन्में हर चौथे व्यक्ति की कुण्डली में कालसर्प दोष मिलेगा 1978 में पूना के ज्योतिष के विद्वान पं. किसन लाल शर्मा ने ही सबसे पहले कालसर्प योग के बारे में "कालसर्प योग" पर कालसर्प योग नामक पुस्तक लिखी थी, और उसी के बाद इस कालसर्प दोष की प्रथा शुरू हुई । सन 1978 के पहले कालसर्प योग, दोष का कोई अस्तित्व ही नहीं था । ,
जानता हूँ कुछ ज्योतिषी भाइयों को क्रोध भी आ रहा होगा, निवेदन है कि यदि आपके पास प्रमाण है तो कृपया पुराण या संहिता के नाम के साथ श्लोक संख्या या फिर प्रमाणित चित्र भी दें , आपका इस बालक पर अनुग्रह होगा !
क्षमा चाहता हूँ !
धन्यवाद !
Update 11/08/18 ,,देखिये अभी सदी के दो प्रसिद्ध ज्योतिषी क्या कहते हैं ......
अब बोलिये......
आप Facebook पर मुझे मिल सकते हैं
/rakesh.pathak.547
आजकल कालसर्प का बहुत ही भय व्याप्त है.जबकि कालसर्प कोई योग नहीं है.ना किसी ग्रन्थ में और नहीं कहीं इसका जिक्र है न किसी पुराण नही किसी संहिता भृगु वशिष्ठ रावण वाराहमिहिर बृहस्पति सभी ज्योतिषीय विद्वान थे सबने अनेक योगों का वर्णन किया पर कालसर्पयोग का क्यु नहीं ,
क्या उस समय सभी ग्रह राहु केतु के बीच नहीं आते थे, किसी महर्षि ने कालसर्प योग का जिक्र नहीं किया
कुछ वर्षों पहले एक राजस्थान के प्रसिद्घ ज्योतिषी व तांत्रिक , जिनहोंने अपना महिमामण्डन में स्वयं को अवतार घोषित कर दिया , उनने इस योग की रचना करदी, और कुछ इनके पीछे कुछ चल पड़े और आज १४४ प्रकार के कालसर्प बन भी गए , और कुछ आजके ज्योतिषीयों ने भी अपनी पुस्तकों में बढ़ा चढ़ा कर लिख दिया , आलम यह है कि १० ज्योतिष की पुस्तक लें एक ही ग्हयोग का विभिन्न फल आपको मिलेगा.
आज ज्योतिषीयों को लोग लुटेरा कहते हैं , ऐसा नहीं कि उस समय इस योग का विरोध नहीं हुआ बहुत विरोध हुआ , पर "आपकी उन्नति में बाधा" यह इतना भयवाचक है कि किसीने उस विरोध पर ध्यान नहीं दिया,
आज शनि की शाड़ेसाती से लोग डरें न डरें ( जिसका प्रभाव पुराणों में विस्तार पूर्वक है , तुसीदास जी ने भी कवितावली में वर्णन किया है)
जिससे डरना चाहिए चाहिए
पर कालसर्प योग हर चौथे पाँचवें व्यक्ति के डरका कारण बन गया. जिसका कोई प्रमाण ही नहीं,
लोग कहेंगे सरप साप लिखा है
.कहा गया "सर्पशाप" का वर्णन तो है पुराणों में कहीं वहीं तो कालसर्प योग नहीं ?
नहीं सर्पशाप योग काल सर्प से पूरी तरह भिन्न है.
हाँ
सर्पशाप का हर जगह वर्णन है. पुत्र कारक गुरू अगर राहू से पीड़ित,या युति से है,तो चांडाल तथा सर्पशाप योग बनता है.जिसका दुष्परिणाम देखने में आते है. पुत्र कारक गुरू ,राहू से युक्त हो तथा शनि से पंचम पीड़ित या दृष्टगत है तो संतान उत्पत्ति में बाधा आती है. लग्नेश राहू से युत हो तो बाधा है . पंचमेश मंगल से युत हो तथा राहू गुरू से दृष्ट होने पर संतान बाधा होती है. कर्क,धनु लग्न में पंचम भाव में राहू बुध दृष्ट या युति से है तो संतान बाधा उत्पन्न होती है. पंचम में राहू हो और मंगल उसे ४-८- की दृष्टी से देखे तो बाधा आती है.ग्रन्थों में कहा भी गया की, "सुते राहौ भौमदृष्टे सर्पशापात सुतक्षयः" पंचम में शनि हो पंचमेश राहू से युत हो,तथा चन्द्रमा उसे देखता हो भी संतान बाधा उत्पन्न हो जाती है. यमे सुते चन्द्र दृष्टे सुतेशे राहुयुते सर्पशापत: . यह तो सर्व विदित है की राहू गुरू की युति या सम्बन्ध अभाव का कारक है चाहे विवाह हो या फिर संतान की उत्पत्ति.इसे इस तरह से भी समझा जा सकता है.गुरू जहां है खराब है जबकि राहू जहां है अच्छा है.और दृष्टी में गुरू अच्छा है तो राहू खराब है यानिकी गुरू के फल को राहू खराब कर देता है. हालांकि अभी और भी कारण हैं
.उसकी फिर कभी चर्चा करूँगा........ पिछली सदी के प्रसिद्ध ज्योतिषी स्वर्गीय डॉक्टर बीवी रमन, ने कालसर्प योग को सिरे से नकार दिया था। वह 60 वर्ष तक एस्ट्रोलॉजिकल-मैगजीन के संपादक रहे थे। वहीं (ज्योतिषी केएन राव के अनुसार* भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, इंग्लैंड की एकमात्र महिला प्रधानमंत्री रहीं मार्गरेट थेचर, अमेरिका के भूतपूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश को काल सर्प दोष था, लेकिन इन्होंने सफलता के नए सोपान अर्जित किए। ) ऐसे अनेक प्रसिद्ध व्यक्तियों की कुंडलियों में राहु-केतु के मध्य में सभी ग्रह थे, जिसे कुछ ज्योतिषी कालसर्प योग की मानते देते हैं, किन्तु फिर भी वह सब अपने जीवन में बड़ी उपलब्धियों को पाने में सफल हुए। .
प्रश्न उठा ,
महाराजा विक्रमादित्य, महाराजा हरिश्चन्द्र, महाराजा नल इत्यादि महापुरुषों को अपने जीवन काल में कालसर्प दोष के प्रभाव को सहना पड़ा था...??? यदि नहीं तो फिर उनके द्वारा सर्वसमर्थ होने पर भी क्यों कठिन यातनाये भोगनी पड़ी..??
इसका उत्तर है - शनि की दशा
शनि चालीसा , का अंश देखते हैं
नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा। चित्र मयूर निगलि गै हारा॥
हार नौलखा लाग्यो चोरी। हाथ पैर डरवाय तोरी॥4॥
भारी दशा निकृष्ट दिखायो। तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो॥ विनय राग दीपक महं कीन्हयों। तब प्रसन्न प्रभु ह्वै सुख दीन्हयों॥
हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी। आपहुं भरे डोम घर पानी॥ तैसे नल पर दशा सिरानी। भूंजीमीन कूद गई पानी॥5॥
इन सबके दुख का कारण शनि की साड़ेेसाती है
यदि इस समय कालसर्प वाली कुण्डली की गड़ना की जाये तो फिर एक शदी में जन्में हर चौथे व्यक्ति की कुण्डली में कालसर्प दोष मिलेगा 1978 में पूना के ज्योतिष के विद्वान पं. किसन लाल शर्मा ने ही सबसे पहले कालसर्प योग के बारे में "कालसर्प योग" पर कालसर्प योग नामक पुस्तक लिखी थी, और उसी के बाद इस कालसर्प दोष की प्रथा शुरू हुई । सन 1978 के पहले कालसर्प योग, दोष का कोई अस्तित्व ही नहीं था । ,
जानता हूँ कुछ ज्योतिषी भाइयों को क्रोध भी आ रहा होगा, निवेदन है कि यदि आपके पास प्रमाण है तो कृपया पुराण या संहिता के नाम के साथ श्लोक संख्या या फिर प्रमाणित चित्र भी दें , आपका इस बालक पर अनुग्रह होगा !
क्षमा चाहता हूँ !
धन्यवाद !
Update 11/08/18 ,,देखिये अभी सदी के दो प्रसिद्ध ज्योतिषी क्या कहते हैं ......
अब बोलिये......
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/rakesh.pathak.547
वाह गुरु मान गए तुम्हें बहुत अच्छे पोस्ट डाली है आज के समय में ऐसे ही क्रांतिकारी ज्योतिषियों की जरूरत है
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