सेक्युलर संस्कृत से क्यों डरते हैं ?
आज हमें पढ़ाया जाता है कि गुरुत्वाकर्षण का सिद्धान्त न्यूटन (1642
-1726) ने दिया.
यदि विद्यार्थी संस्कृत पढेंगे तो जान जाएंगे कि
यह झूठ है.
---
प्राचीन भारत के एक प्रसिद्ध गणितज्ञ भास्कराचार्य (1114 –
1185) के द्वारा रचित एक मुख्य ग्रन्थ *सिद्धान्त शिरोमणि* है हैं।
भास्कराचार्य ने अपने सिद्धान्तशिरोमणि में यह कहा है-
.
*आकृष्टिशक्तिश्चमहि तया यत् खस्थं गुरूं स्वाभिमुखं स्वशक्त्या ।*
*आकृष्यते तत् पततीव भाति समे समन्तात् क्व पतत्वियं खे ।।*
– सिद्धान्त० भुवन० १६
.
अर्थात – पृथ्वी में आकर्षण शक्ति है जिसके कारण वह ऊपर
की भारी वस्तु को अपनी ओर खींच लेती है । वह वस्तु पृथ्वी पर
गिरती हुई सी लगती है । पृथ्वी स्वयं सूर्य आदि के आकर्षण से रुकी हुई है,अतः वह निराधार आकाश में स्थित है तथा अपने स्थान से हटती नहीं
है और न गिरती है । वह अपनी कील पर घूमती है।
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वराहमिहिर ( 57 BC ) ने अपने ग्रन्थ *पञ्चसिद्धान्तिका*में कहा है-
.
*पंचभमहाभूतमयस्तारा गण पंजरे महीगोलः।*
*खेयस्कान्तान्तःस्थो लोह इवावस्थितो वृत्तः ।।*
– पञ्चसिद्धान्तिका पृ०३१
.
अर्थात- तारासमूहरूपी पंजर में गोल पृथ्वी इसी प्रकार रुकी हुई है जैसे दो बड़े चुम्बकों के बीच में लोहा ।
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अपने ग्रन्थ सिद्धान्तशेखर में आचार्य श्रीपति ने कहा है –
*उष्णत्वमर्कशिखिनोः शिशिरत्वमिन्दौ,.. निर्हतुरेवमवनेःस्थितिरन्तरिक्षे ।।*
– सिद्धान्तशेखर १५/२१ )
नभस्ययस्कान्तमहामणीनां मध्ये स्थितो लोहगुणो यथास्ते ।
आधारशून्यो पि तथैव सर्वधारो धरित्र्या ध्रुवमेव गोलः ।।
–सिद्धान्तशेखर १५/२२
अर्थात -पृथ्वी की अन्तरिक्ष में स्थिति उसी प्रकार स्वाभाविक है, जैसे सूर्य्य में गर्मी, चन्द्र में शीतलता और वायु में गतिशीलता । दो बड़े चुम्बकों nके बीच में लोहे का गोला स्थिर रहता है, उसी प्रकार पृथ्वी भी अपनी धुरी पर रुकी हुई है ।
ऐसे अनेकों प्रामाणिक उदाहरण हैं परन्तु भारतीयों की भारतीयता के तन्द्रावस्था में लीन होने के कारण प्राचीन भारतीय विज्ञान के स्रोत विलुप्त प्रायः हैं ।
आओ ज्ञान बढ़ाये
आज हमें पढ़ाया जाता है कि गुरुत्वाकर्षण का सिद्धान्त न्यूटन (1642
-1726) ने दिया.
यदि विद्यार्थी संस्कृत पढेंगे तो जान जाएंगे कि
यह झूठ है.
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प्राचीन भारत के एक प्रसिद्ध गणितज्ञ भास्कराचार्य (1114 –
1185) के द्वारा रचित एक मुख्य ग्रन्थ *सिद्धान्त शिरोमणि* है हैं।
भास्कराचार्य ने अपने सिद्धान्तशिरोमणि में यह कहा है-
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*आकृष्टिशक्तिश्चमहि तया यत् खस्थं गुरूं स्वाभिमुखं स्वशक्त्या ।*
*आकृष्यते तत् पततीव भाति समे समन्तात् क्व पतत्वियं खे ।।*
– सिद्धान्त० भुवन० १६
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अर्थात – पृथ्वी में आकर्षण शक्ति है जिसके कारण वह ऊपर
की भारी वस्तु को अपनी ओर खींच लेती है । वह वस्तु पृथ्वी पर
गिरती हुई सी लगती है । पृथ्वी स्वयं सूर्य आदि के आकर्षण से रुकी हुई है,अतः वह निराधार आकाश में स्थित है तथा अपने स्थान से हटती नहीं
है और न गिरती है । वह अपनी कील पर घूमती है।
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वराहमिहिर ( 57 BC ) ने अपने ग्रन्थ *पञ्चसिद्धान्तिका*में कहा है-
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*पंचभमहाभूतमयस्तारा गण पंजरे महीगोलः।*
*खेयस्कान्तान्तःस्थो लोह इवावस्थितो वृत्तः ।।*
– पञ्चसिद्धान्तिका पृ०३१
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अर्थात- तारासमूहरूपी पंजर में गोल पृथ्वी इसी प्रकार रुकी हुई है जैसे दो बड़े चुम्बकों के बीच में लोहा ।
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अपने ग्रन्थ सिद्धान्तशेखर में आचार्य श्रीपति ने कहा है –
*उष्णत्वमर्कशिखिनोः शिशिरत्वमिन्दौ,.. निर्हतुरेवमवनेःस्थितिरन्तरिक्षे ।।*
– सिद्धान्तशेखर १५/२१ )
नभस्ययस्कान्तमहामणीनां मध्ये स्थितो लोहगुणो यथास्ते ।
आधारशून्यो पि तथैव सर्वधारो धरित्र्या ध्रुवमेव गोलः ।।
–सिद्धान्तशेखर १५/२२
अर्थात -पृथ्वी की अन्तरिक्ष में स्थिति उसी प्रकार स्वाभाविक है, जैसे सूर्य्य में गर्मी, चन्द्र में शीतलता और वायु में गतिशीलता । दो बड़े चुम्बकों nके बीच में लोहे का गोला स्थिर रहता है, उसी प्रकार पृथ्वी भी अपनी धुरी पर रुकी हुई है ।
ऐसे अनेकों प्रामाणिक उदाहरण हैं परन्तु भारतीयों की भारतीयता के तन्द्रावस्था में लीन होने के कारण प्राचीन भारतीय विज्ञान के स्रोत विलुप्त प्रायः हैं ।
आओ ज्ञान बढ़ाये